हठयोग प्रदीपिका के चतुर्थ उपदेश के 103वें में कहा गया है- हठ और लय के सम्पूर्ण उपाय है वे संपूर्ण मन की सम्पूर्ण वृत्तियों का निरोध रूप जो राजयोग है उसकी सिद्धि के लिये ही कहे गये है। इस प्रकार हठयोग को पूर्णता भी समाधि में ही है। समाधि की प्राप्ति के बिना हठयोग पूर्ण नहीं होता है।
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