विश्व के सबसे प्राचीन ग्रंथ वेद जो पूरे चार विभागों में विभाजित हैं। इस अलौकिक ज्ञान के भंडार वेद का तीसरा भाग है सामवेद। वेद के विभाग में Samaveda की विद्या आवश्यक है। सामवेद को ही भारतीय संगीत का मूल तत्व माना जाता है। आज हम आपको Samaved से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करने जा रहे हैं।
साम का अर्थ होता है गान, इस प्रकार Samaved का अभिप्राय है, ऐसा वेद जिसमें संकलित समस्त मंत्र गीतमय होते हैं अर्थात् जिन्हें गाया जा सकता है। इस वेद का नाम सामवेद इसलिए रखागया क्योंकि यह वेद गायन पद्धति से ही संबंधित है। सामवेद के अन्तर्गत १८७५ ऋचाएं हैं जिसमें से ७५ से अतिरिक्त ऋचाएं ऋणवेद से ली गई हैं। उल्लेखनीय है, सामवेद का प्रथम दृष्टा वेदव्यास का शिष्य जैमिनि को माना गया है। Samaved में पाए जाने वाले मंत्रों को ‘सामानि’ कहते हैं। ऋगवेद में साम अथवा सामानि का वर्णन 21 स्थलों पर लिखा गया है।
Samaved संहिता के दो भाग हैं आर्चिक तथा गान। पुराणों में सामवेद की विभिन्न शाखाएं होने का विवरण मिलता है परंतु वर्तमान में जैमिनि, प्रपंच हृदय, दिव्यावदान, चक्रव्यूह देखने पर १३ शाखाओं का बोध होता है। इनमें से भी सामदेव की निम्नलिखित तीन महत्त्वपूर्ण शाखायें इस प्रकार हैं- कौथुमीय, जैमिनीय व राणायनीय।
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