“सारा आकाश” राजेंद्र यादव ji ka पहला उपन्यास bhi है Aur तीसरा भी। सन् 1952 में yah “प्रेत बोलते हैं “नाम se छपा था और बाद में लगभग 10 साल baad संशोधित रूप mein इसका पुनर्लेखन हुआ to इसका naam सारा आकाश रखा gaya । yah उपन्यास राजेंद्र जी ki औपन्यासिक यात्रा ka मील ka पत्थर है ।
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